बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
भोज्य समूह
भोज्य पदार्थों में भोज्य तत्त्वों की समानता की दृष्टि से भोज्य पदार्थों को आधारभूत पाँच भोज्य समूहों में विभाजित किया गया है। इन भोज्य समूहों में भोज्य पदार्थ की उचित मात्रा शरीर के लिए आवश्यक भोज्य तत्त्व प्रदान करेगी। ये पाँच भोज्य समूह निम्नलिखित हैं-
समूह | भोज्य पदार्थ | मुख्य पोषक तत्त्व |
प्रथम | दूध व दूध से बने भोज्य पदार्थ, (छैना, सूखा पाउडर, दूध, दही, पनीर ) | कैल्सियम व राइबाफ्लेबिन, प्रोटीन |
द्वितीय | दालें, सेम, नट्स, मांस, मछली, अण्डा, गृह पक्षी | लोहा वनायलिन, प्रोटीन |
तृतीय | फल ( पपीता, आँवला, नीबू, सन्तरा टमाटर, आम आदि) हरी पत्ती वाली सब्जियाँ (कुल्फा, मेथी, पत्ता गोभी, पालक, चुकन्दर व मूली के पत्ते, चना व सरसों का साग आदि) अन्य सब्जियाँ (फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, लौकी, काशीफल आदि।) | विटामिन 'ए' (कैरोटीन), खनिज लवण, लोहा, विटामिन 'सी' |
चतुर्थ | अनाज - मक्का, रागी, गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा आदि | थायमिन व नायसिन ऊर्जा, लोहा |
पंचम | घी व तेल (मक्खन वनस्पति तेल, शुद्ध घी ) शक्कर व गुड़ आदि | ऊर्जा, आवश्यक वसीयअम्ल, विटामिन 'ए' (जन्तु वसा) |
प्रथम समूह - दूध व दूध से बने भोज्य पदार्थ
दूध हमारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण आहार है। शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक प्रत्येक अवस्था में दूध की जरूरत प्रमुख है। दूध को किसी दूसरे भोजन से स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता है। प्रौढ़ावस्था में प्रतिदिन 2 कप दूध अथवा इसकी मात्रा के समान अन्य दूध से बने भोज्य पदार्थ लेने जरूरी होते हैं।
दूध एक जटिल भोज्य पदार्थ है, जिसमें द्रव की मात्रा ठोस की मात्रा से कहीं ज्यादा होती है। ताजे गाय के दूध में लगभग 87% जल तथा 13% ठोस पदार्थ होते हैं। दूध का संगठन जानवर, जानवर की जाति तथा जानवर के आहार पर निर्भर करता है। एक कप गाय के दूध से लगभग 9 ग्राम प्रोटीन, 9 ग्राम वसा, 12 ग्राम कार्बोहाइड्रेट तथा 160 कैलोरी ऊर्जा मिलती है।
द्वितीय समूह - मांस, मछली, अण्डा, दालें, सेम,
नट्स आदि मांस समूह में विभिन्न जानवरों का गोश्त; जैसे मटन व लैम्ब (भेड़ व बकरी का मांस) तथा पोक (सुअर का मांस) सम्मिलित रहते हैं। मांस समूह में अन्य भोज्य पदार्थ; जैसे-जैसे मुर्गे का मांस, चिकन, मछली, अण्डे, दालें व नट्स भी सम्मिलित रहते हैं।
तृतीय समूह - फल, हरी पत्ती वाली सब्जियाँ तथा अन्य सब्जियाँ
इस समूह के भोज्य पदार्थों के रंग, गन्ध व आकार में बहुत ज्यादा विभिन्नता होती है। इस समूह के भोज्य-पदार्थों से विटामिन 'सी' प्रमुख रूप से प्राप्त होता है। इस समूह के द्वारा विटामिन 'ए' तथा अन्य विटामिन 'बी' कॉम्पलेक्स व लोहा तथा अन्य खनिज तत्त्वों की प्राप्ति होती है।
इस समूह की सब्जियों में पौधे के सभी भाग; जैसे— जड़, कन्द, पत्तियाँ, तना, फूल व बीज शामिल रहते हैं। घास के पौधों के परिपक्व बीज अनाज तथा दाल के पौधों के बीज मटर व सेम में परिवर्तित हो जाते हैं।
इस समूह के भोज्य पदार्थों में जल की मात्रा भार की दृष्टि से 75 से 95% कम होती है। अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थों; जैसे केला व आलू में जल की मात्रा कम तथा कम कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थों; जैसे- टमाटर, तरबूज आदि में जल की मात्रा ज्यादा होती है।
चतुर्थ समूह - अनाज
आज सभी देशों में इस समूह को जीवन के लिए भोज्य पदार्थ समझा जाता है। इस भोज्य समूह की आसानी से उपज, कम मूल्य तथा अधिक संग्रह का गुण रखने के कारण उसका प्रयोग सबसे अधिक व नियमित होता है। (पूड़ी, ब्रेड, केक, रोटी, परांठा, बिस्कुट आदि) चावल का प्रयोग भी आहार में अधिकता से होता है। कई प्रदेशों में तो व्यक्ति अपनी 80% ऊर्जा की प्राप्ति चावल से ही करते हैं। अनाजों में औसतन 12% प्रोटीन, 2% वसा, 75% कार्बोहाइड्रेट, 10% जल तथा लोहा, फास्फोरस, खनिज तत्त्व तथा थायमिन विटामिन प्रमुख रूप से होते हैं।
अनाज शरीर में ऊर्जा के प्रमुख साधन होते हैं। इस समूह की बहुत अधिक मात्रा प्रयोग करने पर शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है। विटामिन 'ए', विटामिन 'सी' तथा कैल्सियम को छोड़कर बाकी सभी भोज्य तत्त्व अनाजों में उपस्थित रहते हैं।
पंचम समूह - घी, तेल तथा शर्करा
घी व हाइड्रोजनीकृत वसा ( डालडा, रथ), मक्खन में संतृप्त फैटी एसिड की मात्रा ज्यादा होती है। वनस्पति तेलों में असंतृप्त फैटी एसिड अधिक होता है। सोयाबीन, बिनौला, सरसों तथा तिल आदि के तेलों में लिनोलिक एसिड की मात्रा अधिक होती है जबकि जैतून व नारियल के तेलों में इस आवश्यक फैटी एसिड की मात्रा कम होती है।
शर्करा के रूप में गन्ने की चीनी का विशेष रूप से प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त चुकन्दर की शर्करा, मक्के की शर्करा, शहद आदि का भी मिठास के लिए उपयोग होता है। पके हुए भोज्य पदार्थों को मीठा बनाने के लिए विशेष रूप से शर्करा का प्रयोग होता है।
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